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दूसरा भाग — दिल्ली कॉरपोरेशन चुनाव 2017 और देश के भविष्य की दिशा…..

Vo Subah Kabhi To Ayegi.....B.D. Khambata
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इस बार विश्लेषण है आम आदमी पार्टी  का —

जिस तरह से देश की जनता    आम आदमी पार्टी  से सकारात्मक बदलाव की उम्मीद कर रही है एवं  प्रबुद्ध वर्ग जिस तरह से  उसके कार्यों पर सतत  द्रष्टि   बनाए हुए है उससे इस पार्टी का महत्व बहुत ज्यादा बढ़ गया  है।  लेकिन  यह समझ से परे  है की आम आदमी पार्टी क्यों चाहती है की सारी विरोधी पार्टियां  उसके  उदय का स्वागत करें ? जैसा की  हमेशा से होता आया है , विरोधी पार्टियां तो रास्ते में कांटे डालेगी ही, आप ने चतुराई से उन रास्तों पर बिना घायल हुए चलकर अपने लक्ष्य को पाना चाहिए।  बार-बार यह शिकायत करना  की उसे काम नहीं करने दिया जा रहा है,   पार्टी की अपरिपक्वता और कमजोरी माना जा रहा है।  कहीं ऐसा न हो की कॉरपोरेशन चुनाव में जनता द्वारा यह मान लिया जाए की  इस पार्टी को कॉरपोरेशन में भी काम तो करने नहीं दिया जायेगा,  फिर क्यों इसे वोट दें ?  भाजपा और आम आदमी  पार्टी में हो रहे आरोप-प्रत्यारोप से नुकसान  दोनों पार्टियों को हो रहा है।
दिल्ली एक पूर्ण राज्य नहीं है। यहाँ का मुख्य मंत्री  एक सिमित दायरे में ही काम  कर सकता है।    यह प्रतीत होता है की अनुभवी सलाहकारों  की पार्टी के पास कमी है, इसीलिए बिना क़ानूनी   प्रक्रिया को पूर्ण किये  21 विधायकों को संसदीय सचीव  बना दिया गया और अब दोष केंद्र शासन पर डाला जा रहा है। यदि चुनाव आयोग द्वारा इन 21 विधायकों को निकाला जाता है तो पार्टी के लिए सफाई देना कठिन होगा।  क्या उस स्थिति में पार्टी चुनाव आयोग पर भी आरोप लगाना शुरू कर देगी ?
जानकारी के अनुसार 21 के अलावा भी अन्य कई विधायकों को   लाभ का पद दिए जाने बाबद शिकायत चुनाव आयोग को की गई है। अतः  भविष्य में प्रमाणित  होने पर  कुल 40 विधायकों पर कार्यवाही हो सकती  है।   यदि ऐसा होता है, 70 में से 40 विधायक यदि गलत मान लिए जाते हैं,  तो   गैर कानूनी रूप से कार्य करने के कारण इसे  राष्ट्रपती शासन लगाने के लिए उचित कारण माना जा  सकता है।   आम आदमी पार्टी के लिए आने वाले समय में परिस्थितियां अत्यन्त जटिल होने वाली हैं लेकिन क्या  उनका सामना करने के लिए पार्टी तैयार है ?  हो सकता है की हमारी बात आज बुरी लगे लेकिन यह  कटु सत्य है की पार्टी अंदर  ही अंदर  कमजोर होती जा रही है लेकिन ऊपर बैठे कर्ता-धर्ता अभी भी इससे  पूरी तरह अनजान हैं।
पार्टी के पास अब वो ईमानदार कार्यकर्ता नहीं हैं जिनके कारण उसे दिल्ली में  जीत मिली थी। मध्यावधी कॉरपोरेशन चुनाव में इसीलिए वे 13 में से मात्र  5 सीटें  जीत पाए।  प्रचार के लिए कार्यकर्ता नहीं मिलने  के कारण  उम्मीदवारों ने 500 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति दिन के हिसाब से तन्खा देकर लोगो  को नारे लगाने के लिए रखा  था।  क्या ऐसे कार्यकर्ता पार्टी के कार्यों को सही ढंग से प्रचारित कर सकते   हैं ?  इससे भी ज्यादा शर्मजनक स्थिती यह  है की इन तथाकथित कार्यकर्ताओं को एवं वोटर्स को शराब पिलवाई जा रही थी ?  शराब पीकर ये कार्यकर्ता मीटिंग में पहुंचते  हैं। अब लोगों के मन में पार्टी के प्रति वो पहले  वाला सम्मान कहीं भी नजर नहीं आ रहा।
एक समय था जब पार्टी के पास कर्मठ कार्यकर्ताओं की भरमार थी और जनता   के मन में कार्यकर्ताओ के लिए इज्जत थी।   दो घटनाओं का वर्णन प्रासंगिक होगा  जिसे  विधानसभा चुनाव के पहले देखा गया था।  एक बार क्रोसिंग पर कार वाले की गलती के कारण हुई टक्कर से लोडिंग गाड़ी में बहुत नुकसान हुआ।   लग रहा था की अब जमकर हंगामा होगा।  लेकिन गुस्से से तमतमा रहे लोडिंग गाड़ी वाले ने जब टोपी पहने कार्यकर्ताओं को कार में से उतर कर ईमानदारी से गलती स्वीकार करते हुए नुकसान की भरपाई के लिए रुपये देने चाहे, तो उसका सारा आक्रोश गायब हो गया और उसने यह कहते हुए रुपये लेने से मना कर दिया की आप लोग एक अच्छे काम में लगे हुए  हैं, मैं आपसे रुपये नहीं ले सकता, किसी तरह  स्वयं यह नुकसान उठा लूंगा।  कार वालों द्वारा बहुत प्रयास करने पर भी उसने रुपये नहीं लिए।  यह दृश्य   भावविभोर करने वाला एवं अविस्मरणीय था।
दूसरी घटना एक प्रचार कार्यक्रम  था जिसमें टोपी पहने लगभग 150 कार्यकर्ता  घर-घर जाकर लोगों को पार्टी के बारे में समझा रहे थे।  आश्चर्य की बात ये थी की उसमें एक भी बड़ा नेता नहीं था और न ही कोई पैसे लेकर नारे लगाने  वाले  लोग, लेकिन फिर भी इतने सारे कार्यकर्ता प्रचार कर रहे थे। एक नेता जैसे व्यक्ति को जब भरोसा नहीं हुआ  तो  उसने कुछ कार्यकर्ताओं को रोककर पूछ लिया की कितने रुपये मिले हैं तुम्हें और तब नेताजी को उन  ईमानदार कार्यकर्ताओ  ने ऐसा जम कर सुनाया की वे तुरंत चलते बने। दिल्ली में कई जगह कार्यकर्ता इसी  तरह लगातार प्रचार कर  रहे थे।
उन्हीं ईमानदार कार्यकर्ताओं के प्रचार की  बदौलत पार्टी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में इतनी बड़ी विजय मिली थी। इन कार्यकर्ताओं में अनुभव की कमी अवश्य थी लेकिन उन जैसे कार्यकर्ता अन्य किसी भी पार्टी में मुझे नहीं दिखे । इनकी तुलना केवल आर एस एस के अनुशासित प्रचारकों से की जा सकती है जिन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर अपना पूरा जीवन आर एस एस को समर्पित कर रखा है।   आर एस एस के  कई वर्षों की मेहनत का परिणाम हैं ये  प्रचारक और स्वयंसेवक  जबकि  आम आदमी पार्टी को तो ऐसे प्रचारक   सहज में ही मिल गए थे परन्तु  पार्टी उनका महत्व नहीं समझ पाई।   पार्टी के कर्णधारों का यह मानना है  की उनके पास 67 विधायक और उनकी टीम  हैं  इसलिए और किसी   की अब कोई जरूरत नहीं है। परिणामस्वरूप उन निःस्वार्थ प्रचारकों और स्वयंसेवकों की अवहेलना की गई जिसके कारण  इनमें से अधिकांश लोग  पार्टी से अलग हो गए।
क्या कोई विश्वास कर पाएगा की केंद्र में शासन करने का सपना देखने वाली पार्टी के पास दिल्ली में कोई व्यवस्थित संगठन ही नहीं है।  चुनाव आयोग की  बाध्यताओं  के कारण  आवश्यक होने से संगठन बनाने का  दिखावा  अवश्य किया  गया  है  लेकिन   उसका कोई महत्व नहीं है ।  पार्टी पूरी तरह विधायकों पर ही निर्भर है।  पार्टी के जो भी बचे हुए थोड़े से ईमानदार कार्यकर्ता हैं वे भी स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। जब जरूरत पड़ती है तो उन्हें काम करने का आदेश दे दिया जाता है और साथ में लम्बा-चौड़ा भाषण भी – पद की इच्छा न करो, केवल काम करते जाओ, सरदार भगतसिंह ने क्या किसी पद की इच्छा रखी थी…..। न तो किसी को कोई परिचय पत्र दिया जाता है, और न ही जिम्मेदारी दिए जाने बाबद कोई पत्र । केवल काम करने के लिए आदेश दिया जाता है, जैसा की गुलामों के साथ होता  है।  उनमें आक्रोश  है यह देखकर की सिद्धांतों की बड़ी-बड़ी बातें करने  वाले स्वयं   तो पदों का लालच छोड़ नहीं पा रहे हैं और उन्हें मूर्ख बना रहे हैं ।   आम आदमी पार्टी का यह रवैया  समझ से  बाहर है की वह क्यों उस सीढ़ी को ही काट रही है जिसके सहारे वह इतने ऊपर चढ़ी है ?  किसी समय जनता को  ‘आप ‘  ने   बताया था की विधायक और मंत्री तो जनता के नौकर हैं लेकिन क्या इसे अब पार्टी ने भुला दिया है ?  दिल्ली कॉरपोरेशन चुनाव 2017  में  ये कार्यकर्ता  पार्टी के लिए मन से काम नहीं करेंगे।    इन सारी परिस्थितियों का आकलन गहराई से करने के बाद साफ दिख रहा है की जितनी तेजी से पार्टी ऊंचाई पर पहुंची है उतनी ही तेजी से इस पार्टी का पतन  भविष्य में  होना लगभग तय  है, हो सकता है की वह समय दिल्ली का आने वाला  कॉरपोरेशन चुनाव 2017  हो ।
फिर भी  आम आदमी पार्टी को सुझाव देना चाहेंगे की यदि वे अपना अस्तित्व बनाए रखना चाहते हैं तो संगठन और कार्यकर्ताओं का महत्व समझें।  विधायक तो  आते-जाते रहेंगे लेकिन ये कार्यकर्ता ही हैं जो पार्टी के कार्यों को जनता तक पहुंचाते हैं। सबसे पहले तो उन पुराने  कार्यकर्ताओं को महत्व देते  हुए  उन्हें परिचय पत्र दिया जाए और चुनाव के समय उम्मीदवार  चयन में  और अन्य प्रत्येक  निर्णय में उनकी राय को महत्व दिया जाए ताकि उनको यह अहसास हो की पार्टी द्वारा उनके योगदान को महत्व दिया जा रहा है। विधायकों पर भी इन कार्यकर्ताओं का  नियंत्रण होना चाहिए ताकि वे  जनता से किए  गए वादों को   पूरा करवा सकें।
इसमें कोई संदेह नहीं की आम आदमी पार्टी द्वारा कई अत्यन्त सराहनीय कार्य किए जा रहे  हैं।  अतः अन्य पार्टियों से  विवादों को टालते  हुए केवल अपने उन सराहनीय कार्यों को ही जनता के बीच प्रचारित-प्रसारित करने पर ध्यान केंद्रित करें।  लेकिन यह तभी संभव होगा जब  पार्टी फिर से अपने निष्ठावान कार्यकर्ताओं को संगठित कर पाती है।  वे  कार्यकर्ता  ही घर-घर जाकर पार्टी द्वारा जनहित में किए जा रहे कार्यों को सही ढंग से समझा  पाएंगे और जनता को फिर से यह विश्वास भी दिला  पाएंगे  की विधायक उनके  सेवक मात्र हैं जिन्हें  चुनाव रूपी इंटरव्यू द्वारा जनता ने ही  सिलेक्ट किया है और जनता के पैसों से ही विधायकों की तन्खा दी जाती है,  इसलिए इनसे काम लेने का अधिकार भी जनता का है।  जनता को यह भी विश्वास दिलाना होगा की चुनाव पूर्व जो वादा किया था उसके अनुसार यदि किसी  विधायक से जनता को   शिकायत होगी तो उसे पार्टी द्वारा हटाने की कार्यवाही भी की जाएगी।  इस कटु सत्य को पार्टी जितने जल्द समझ ले उतना ही उचित होगा की पार्टी की कथनी और करनी में अंतर दिखाई देने  से जनता का विश्वास आम आदमी पार्टी पर से उठने लगा है।  यदि सही तरीके से प्रयास नहीं किया गया, और किसी अन्य पार्टी ने जनता के सामने स्वयं को ज्यादा विश्वसनीय रूप से पेश कर दिया तो  आम आदमी पार्टी को  इस चुनाव में बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ेगा।
अगले बार  तीसरे  भाग में पढ़ें विश्लेषण  कांग्रेस पार्टी  का ….

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